Saturday, December 14, 2013

पकपक

बकता हूँ मैं दिन औ रात,
आखिर इतना बकता क्यूँ हूँ,
सुनाई बस यही देता है,
पकपक पकपक पकपक पकपक|
एक ही बात दिन ब दिन,
आखिर नहीं मैं थकता क्यूँ हूँ,
कहते हैं सब, बंद कर अपनी,
कचकच कचकच कचकच कचकच|
एक बार जो बात हुई, सो हुई,
सौ सौ बार उसको करता क्यूँ हूँ,
समझ में बस इतना आता है,
भकभक भकभक भकभक भकभक|
दोहरा दोहरा, तिहरा तिहरा
बात की बात ही खत्म हुई,
बात में बस जो बात बची, वो थी,
पटपट पटपट पटपट पटपट|
पहले तो फिर भी सुनते थे जो,
कान बंद किये उन्होंने भी,
उनको भी अब लगने लगा था,
खटखट खटखट खटखट खटखट|
अब तो मैं खुद भी तंग आ चुका,
बेइज्जती अपनी करवा करवा कर,
मुझको भी अब सुनने लगा है,
बसकर बसकर बसकर बसकर|
चुप हो जाना चाहता हूँ मैं,
गुम हो जाना चाहता हूँ मैं,
चाहता हूँ मैं जीना फिर से,
मरकर मरकर मरकर मरकर||

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