Saturday, December 14, 2013

ऐसा कोई पल

उसने मुझसे पूछा, बता ऐ साथी,
जो तू न भूला, ऐसा कोई पल,
जिस लम्हे की याद तुझे है आती,
उस हसीन राह तू ज़रा चल|
मैं सोच में पड़ा, क्या कहूं,
कहाँ से दूं, उत्तर मैं तुझे,
ज़िन्दगी टटोलूं, कभी झांकूं,
पर वो पल, न मिले मुझे|
आश्चर्य की है बात, हर दिन,
हम जीतें हैं पल कुछ हज़ार,
पर जब कोई कहता है गिन,
बेबस हो जाते, लगते लाचार|
असल में जीवन काटते बस,
पर जीते कभी नहीं हैं हम,
हँसते हैं, जब कोई बोलता हँस,
चाय पीते, वो भी चीनी कम|
मैंने कभी नहीं सहेजे वो पल,
कभी रूककर उन्हें नहीं पकड़ा,
सोचूँ कल, आज और कल,
मजबूरियां ने मुझे था जकड़ा|
इसी तरह जिए, इसी तरह जायेंगे,
न होंगी अपनी दो-चार यादें भी,
सपने भी नहीं अच्छे कभी आयेंगे,
जिंदगी बस उम्मीद के भरोसे की|
शायद तू ही है साकी, जिसका,
था इंतज़ार मैंने किया अबतक,
मुझे नहीं मालूम, पता उसका,
पर यादों को रोकूँ कबतक||

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