Saturday, December 14, 2013

हॉस्टल की यादें

सुट्टे का धुंआ, पसरा था हर ओर,
नशे की चुप्पी, न होता कोई शोर,
किस राह चलें, क्यों सोचें हम,
हॉस्टल, दोस्त, मस्ती हरदम|
ठहर जाता था वक़्त, आकर वहां,
वो धरती, आसमान, वही सारा जहाँ,
खेले कूदे, लड़े झगड़े, सब वहां,
किसने कहा जन्नत नहीं होती यहाँ|
वो किला था हमारा, हम सिपह:सलार,
सजती थी महफ़िल, लगता दरबार,
औरत जात का आना मना है इधर,
हर दीवार पर यही लिखा था उधर,
पहली बार का जश्न, जोरदार,
पहली हार का मातम, खूंखार,
किताबों की जली होली, मज़ा,
छुट्टी में घर जाना लगती थी सज़ा|
मारपीट की नौबत, कुछ कहा हो,
किसीने हॉस्टल के खिलाफ, जो,
हो जाते सब तयार, जान देने को,
जब उसकी इज्ज़त ताक पर हो|
वहीँ सब सीखा, वहीँ सब किया,
वहां नहीं रहा, तो क्या ही जिया,
हॉस्टल की ज़िन्दगी न हूँ भुला पाता,
न चाहते हुए भी ख्याल है आ जाता||

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