Friday, September 16, 2011

सात दिन बरसात के

भीगी भागी रात थी वो,
घूंघट डाले साथ थी वो,
भूल नहीं मैं क्यूँ पाता,
वो सात दिन बरसात के|
असल नहीं वो सूद था बस,
जो मुझे लगा था रब जैसा,
वापस कर दो मुझको अब,
वो सात दिन बरसात के|
मुझको होती थी सिरहन सी,
उसकी आँखों की नश्तर से,
खो गए हैं जाने कहाँ गए,
वो सात दिन बरसात के|
बारिश की बूंदों का पड़ना,
बिना बात के भी तेरा लड़ना,
छप-छप करती चप्पल जब,
वो सात दिन बरसात के|
एक सौंधी सी मट्टी खुशबू,
ठण्ड लगी, सो लगी अलग,
गर्मी करती उसकी सांसें,
वो सात दिन बरसात के|
वो बात ना जाने क्या होती,
जो रात जहन में आती थी,
खुस-फुस करती फ़ोन पे तू
वो सात दिन बरसात के|
खुशियाँ आयीं बेहिसाब,
गम सारे मेरे हवा हुए,
फिर आयेंगे जल्दी से कब,
वो सात दिन बरसात के||

Tuesday, September 6, 2011

Why O! Why

Wipe off that beautiful smile,
I can’t resist it.
Cover up those bare toes,
Temptations building.
The piercing eyes,
All truth they know.
Those luscious lips, look away,
My feet trembling.
Oh that wiggly nose,
Red cherry passion.
A dancing belly perfect,
Why O! Why.
Open up the tied hairs,
Bring down the curtain.

Monday, September 5, 2011

रात जवां, अभी ढली नहीं

नश्तर से नैन तेरे चल जाते,
जब तब, घायल कर जाते,
दिल को मेरे हाय, तब तब,
थोडा ठहर, न हो रुखसत,
रात जवां, अभी ढली नहीं|
प्यारी सी हँसी, कोमल पंखुडियां,
होठ तेरे, ललचाते मुझको,
शर्म से लाल गाल तेरे,
कितना रोकूँ, तड़पाते मुझको,
थोडा ठहर, न हो रुखसत,
रात जवां, अभी ढली नहीं|
जब होती है तू उदास, रोता है,
मन मेरा, दुखता अन्दर कुछ मेरे,
मत बहाना कभी तू आंसू,
बहुत कीमती हैं, पूछ मुझसे,
थोडा ठहर, न हो रुखसत,
रात जवां, अभी ढली नहीं|
जुल्फें तेरी, उलझी सुलझी,
हर वक़्त तेरा जूझना उनसे,
पर जैसी भी हैं, भाता है मुझे,
उंगलियाँ जब फसती हैं मेरी,
थोडा ठहर, न हो रुखसत,
रात जवां, अभी ढली नहीं|
बचपना तेरा, इतराना, कट्टी,
हंस पड़ता हूँ, बंद आँखें करके,
मेरे छूने से होती सिरहन तुझे,
तुझे परेशां करता मैं हक़ से हूँ,
थोडा ठहर, न हो रुखसत,
रात जवान, अभी ढली नहीं|
जाना है तो जा, न पीछा
करूंगा मैं, बस निगाहें मेरी,
रुखसत भी हो गयी जो तू,
अहसास को कैसे ले जायेगी,
कितना भी दूर चली जा,
यह रात लौटकर फिर आएगी||