Friday, September 16, 2011

सात दिन बरसात के

भीगी भागी रात थी वो,
घूंघट डाले साथ थी वो,
भूल नहीं मैं क्यूँ पाता,
वो सात दिन बरसात के|
असल नहीं वो सूद था बस,
जो मुझे लगा था रब जैसा,
वापस कर दो मुझको अब,
वो सात दिन बरसात के|
मुझको होती थी सिरहन सी,
उसकी आँखों की नश्तर से,
खो गए हैं जाने कहाँ गए,
वो सात दिन बरसात के|
बारिश की बूंदों का पड़ना,
बिना बात के भी तेरा लड़ना,
छप-छप करती चप्पल जब,
वो सात दिन बरसात के|
एक सौंधी सी मट्टी खुशबू,
ठण्ड लगी, सो लगी अलग,
गर्मी करती उसकी सांसें,
वो सात दिन बरसात के|
वो बात ना जाने क्या होती,
जो रात जहन में आती थी,
खुस-फुस करती फ़ोन पे तू
वो सात दिन बरसात के|
खुशियाँ आयीं बेहिसाब,
गम सारे मेरे हवा हुए,
फिर आयेंगे जल्दी से कब,
वो सात दिन बरसात के||

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