Saturday, December 14, 2013

मैं हाय सौदागर बन न सका

प्रेमी में कहा प्रेमिका से, कि वफ़ा न दिया, वफ़ा को मेरे ऐ जालिम,
फिर भी दिल यह मेरा, तेरे लिए धड़कता क्यों है?
प्रेमिका बोली, यह कोई अनबूझ पहेली नहीं, सुलझा न जिसको सकता तू,
क्यों देती मैं साथ तेरा, जब तू खुद से ही बदल गया,
तू लाता था हर दिन गुलाब मुझे, गुलदस्ता कब से खाली है,
दिखाता था मुझको ख्वाब नए, किस्मत भी कितनी साली है।
क्या सौगातों का मोह था यह, मुझसे तूने ना प्यार किया,
हीरे मोती, का मोल तुझे, आह मेरी तू सुन न सकी,
जेब से था मैं थोड़ा तंग, गुलदस्ता कैसे भर पाता,
फ़ाके कितने देखे मैंने, कितना तुझको बतलाता?
तंगी जो आयी तुझपे थी, उससे मुझे है क्या लेना,
मैं आज कल की लड़की हूँ, न हूँ कोई जूलिएट मैं,
गहने श्रृंगार सबका है दाम, कैसे मुझे दिलवाता,
तेरे जैसे कंगले पे, मेरा दिल कैसे टिक पाता?
तेरी याद मैं पीता हूँ, तेरे साथ की चाह मुझे,
तू पर कितनी जालिम है, हृदय है या पत्थर है?
मुक्ति ही मुझको दे दे, सांस को तूने छीन लिया,
सौदा ये था लिए तेरे, मैं हाय सौदागर बन न सका।।

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