Tuesday, August 26, 2014

बात चली

लब पे लगा के मैखाने को,
झूमा मैं हर गली गली,
रखनी मुझको छुपा के थी पर,
रात चली तो बात चली।
ताश के पत्ते हाथ में आकर,
नोट की गड्डी खुली खुली,
अड्डा किसीको पता न था पर,
रात चली तो बात चली।
सुट्टे के धुएं के छल्ले,
निकले जैसे हो नली नली,
घर पहुंचा खुशबू लगा के था पर,
रात चली तो बात चली।
नाच गान औ मनोरंजन,
तोते संग थिरकी थी तितली,
पैसे बटोर वो चली गयी पर,
रात चली तो बात चली।
रात की बात रात के संग,
कैसे कैसे थे मन मचली,
उड़ गया मैं जैसे कटी पतंग पर,
रात चली तो बात चली।
गुम हुआ था ऐसी मस्ती में,
तसवीरें थीं सब हिली हिली,
इधर उधर कर देता मैं पर,
रात चली तो बात चली।।

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