Tuesday, August 26, 2014

आजादी

न लेते इजाजत जीने की,
कर छाती चौड़ी सीने की,
अब सुकूं में पूरी आबादी,
है लहू बहा, ली आजादी।
अब मर्जी अपनी चलती है,
हवा मुफत में मिलती है,
खुल कर करते सब संवादी,
है लहू बहा, ली आजादी।
दादा नाना से पूछो तुम,
स्वाभिमान रहता था गुम,
पूर्णिमा भी लगती आधी,
है लहू बहा, ली आजादी।
काले गोरे का भेद मिटा,
बर्फ की सिल्ली, भगत लिटा,
देते प्रताड़ना अत्यादि,
है लहू बहा, ली आजादी।
रात पहर था सोने का,
अंत हुआ था खोने का,
हर ओर हुई थी उन्मादी,
है लहू बहा, ली आजादी।
दंगे फसाद भी खूब हुए,
आगजनी और धुएं धुएं,
जान माल की बर्बादी,
है लहू बहा, ली आजादी।
क्या महसूस हुआ उस पल,
गर पूछ सकूँ बलवानों से,
निकला सूरज, या थी आंधी,
है लहू बहा, ली आजादी।।

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