Monday, July 25, 2011

आँखों में हैं ऐसी तन्हाइयां

मेरी आँखों में हैं ऐसी तन्हाइयां,
कि नींदों में आती बस अंगड़ाइयां|
लगे है बेगाना कुछ ऐसा जहां,
जैसे ओझिल है रातों को परछाइयां|
पास होकर भी वो दूर जाती रही,
मार ठोकर हमें, मुस्कराती रही|
उसकी लानत में है एक ऐसा मज़ा,
बिना उसके ताने, यह जीवन सजा|
उन बातों की यादें, हैं आती मुझे,
कि रातों कि आहट में खोजूं तुझे|
तेरी मुस्कराहट, एक ऐसा नशा,
उन मदहोशियों में, यह बेबस फसा|
जंगल का राजा, होने दो शेर को,
एक दिन तो खदेड़ा वो भी जाएगा|
अगर पास हो शेरनी,  तेरे जैसी तो,
खदेड़ने पर भी राजा वो कहलायेगा|
ऐ काश, रेत रूकती मेरे हाथ में,
समय को भी थमने को कह पाता मैं|
तो साहिल से कराता में पहचां तेरी,
और चुपके से तुझको सता जाता मैं|
होश वालों को होती नहीं जो खबर,
वो खबर मैं नशे में सुनाता रहा|
रात भर मेघ काले, बरसते रहे,
रात भर गीत, मैं गुनगुनाता रहा|
मेरी आँखों में हैं ऐसी तन्हाइयां,
कि नींदों में आती बस अंगड़ाइयां|
लगे है बेगाना कुछ ऐसा जहां,
जैसे ओझिल है रातों को परछाइयां||

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