Wednesday, February 16, 2011

शादी मुबारक हो दोस्त!

बात उन दिनों की है,
जब बेफिक्री का आलम था,
फ़ालतू थे, वक़्त नहीं कम था,
संग में छड़ी थी वो सीड़ियाँ,
संग में लिया था पहला कदम|
 
वो पहला कश, वो पहला जाम,
वो चुराया हुआ पल, वो अधूरा काम,
संग में छेड़ी थी कुडियां,
संग में डाला था दाना,
वो देना सफायियाँ, नया बहाना|
 
हर दिन नयी कसम,
बस आज से पढ़ेंगे,
नया अध्याय, शुरू करेंगे,
और वही हर बार का काम,
दिन को लुक्खागिरी, रात को जाम|
 
वो संपादकीय लेख,
वो अपनी धौंस जमाना,
देख लेंगे साले को, अगला लेख उस पे,
पता नहीं है पंगा लिया है किस से,
साथ-साथ थे, इसलिए सब कर गए,
वरना यही कहते कि, ‘… लग गए’|
 
वो पालतू बिल्ली जो थी,
आज भी याद आती है,
बिलोंटा देखते ही,
उसकी चीख निकल जाती थी|
 
संग में मिलकर दुनिया को गालियाँ दी,
अलग-अलग शहर चले गए,
नज़र लग गयी उसी ज़माने की|
 
तू अब नयी ज़िन्दगी शुरू करने जा रहा है,
बहुत खुश हूँ दोस्त तेरे लिए,
तू सलामत रहे यही दुआ करूंगा,
क्यूंकि करता हूँ में खुद से भी बहुत प्यार, 
मेरी उम्र तुझे लग जाए, यह नहीं कहूँगा|
 
तेरी होनी वाली जीवन साथी से,
तुझे मिले अपार प्रेम,
जब कभी तेरे घर आऊँ,
वैसे तो दोस्तों से कम ही मिल पाते हैं,
एक कप चाय पिला दे भाभी बस,
यह ना कहे, “कैसे-कैसे दोस्त आ जाते हैं”?

No comments: