Saturday, February 5, 2011

एक सताती बात

एक सताती बात,
कि होता क्यूं है तांडव,
बने सब कौरव पांडव,
बीच बाज़ार के आगे,
न कोई पर्दा ढाके,
न कोई अपने क्यूं है,
न आते सपने क्यूँ हैं,
रात दिन, दिन रात|

एक सताती बात,
कि क्यूं कोई भूखा सोता,
क्यूं कोई बच्चा रोता,
अनाज है धरती देती,
मुफत, ना पैसे लेती,
क्यूं फिर सबको न मिलती,
फ़कत दो वक़्त की रोटी,
रात दिन, दिन रात|

एक सताती बात,
कि क्यूं कोई इतना लोभी,
ना आती लाज जराभी,
जब है कोई बहू जलाता,
चंद रुपयों की खातिर,
बने कोई इतना शातिर,
कि बस पैसा ललचाये,
रात दिन, दिन रात|

एक सताती बात,
बुढ़िया की किस्मत कैसी,
कि उसकी आँखें तरसी,
पर उसका पूत ना पूछे,
उसे तो बोझ लगे अब,
जब निकले सब मतलब,
कहाँ पे हुई थी गलती,
यही ईश्वर से पूछे,
रात दिन, दिन रात|

एक सताती बात,
कि देखो खाखी-खादी,
करें देश बर्बादी,
औ हम सब चुप कर देखें,
बेबस धृतराष्ट्र के जैसे,
वतन का हरते चीर,
अरे अब जाग भी जा तू,
तुझे धरती है पुकारे,
रात दिन, दिन रात|

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