Wednesday, January 14, 2009

भूली बिसरी यादें

कहाँ-कहाँ से पकड़ से लाये,
कैसे करतब करवाने को|
बंद कर दिए एक पिंजरे मैं,
आपस मैं खोपड़ टकराने को|

तीन मोर और दो थी मोरनी,
नई-नई पहचान हुई|
पग-पग कर थी राह जोड़नी,
कच्चा था धागा टूटी थी सुई|

प्यार था उमड़ा जिन बातों पर,
वो बातें कड़वी याद हुईं|
एक हाथ से ताली नहीं बजती,
कहावत ये साकार हुई|

मोर-मोरनी लड़े औ झगडे,
अपनों का नाम खराब किया|
होते हैं जीवन में लाखों लफड़े,
पर हाय ये विष क्यों सबने पिया|

नजरें मिला पाओगे अब तुम,
दर्पण मैं अपने आप से क्या|
गिर कर भी उठ पाओगे क्या,
नजरों मैं अपने आप के तुम|

भगवान् इन्हें सदबुद्धि देना,
आगें करतब कुछ ऐसा करें|
सब देखें और गुणगान करें,
कि मोर-मोरनी हों तो ऐसे,
और सभी का ये सम्मान करें|

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