Monday, December 3, 2012

अध्याय

गूँज उठी आवाज मेरी,
पसरा सन्नाटा था,
खाली मकान हुआ वो,
घर था मेरा जो कभी।

एक एक कर चुना था सब,
एक पल में सब छूट गया,
मुहँ से शब्द न निकले,
गले तक आकर थम गए।

वो बस ठहराव न था,
जीवन का था एक अध्याय,
सुहानी यादें, खुशनुमा पल,
आज था जो, बन गया कल।

कुछ और भी था जो छोड़ा था,
दूर अपने से उसको किया,
जीवन इतना कठिन होगा,
सोचा न था मैंने कभी।

थोड़े दिन की बात है ये,
फिर से कमल खिल जाएगा,
राहें मंजिल को पहुंचेंगी,
मौसम जब रंग बदल लेगा।

बस तब तक न भूलना होगा,
लक्ष्य पर रखनी होगी नज़र,
जिस कारण से विरह चुनी हमनें,
उसको सार्थक करना होगा।।

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