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Friday, September 20, 2013

औ मैं सो जाऊं

निकला था मंजिल की ओर,
अच्छा हो रास्ता खो जाऊं,
एक चाह अधूरी हो पूरी,
हो अँधेरा औ मैं सो जाऊं॥
हैं थकी थकी आँखें मेरी,
औ फटी फटी सी बातें हैं,
पूछ-२ पता मैं त्रस्त हुआ,
न ही मिले, अब यही दुआ॥
जब खाने को हो फ़क्त हवा,
औ पीने को आंसूं न कम हौं,
थर-२ कर काँपे देह मेरी,
चाहे भट्टी सी गरमाई हो॥
नाम ख़ाक, काहे की साख,
झुका के सर, औ कटा नाक,
केशों में रेंगती जूं भी अब,
मेरा लहू पीने से बचती है॥
देखा था सपना जो कभी,
बस धुंधला सा याद आता है,
ताश के पत्तों से बने महल,
क्या हवा का झोंका सह पाए?
जन्नत हैं जाना सब चाहते,
ऐसा हो जहन्नुम मैं जाऊं,
एक चाह अधूरी हो पूरी,
हो अँधेरा औ मैं सो जाऊं॥

Monday, September 5, 2011

रात जवां, अभी ढली नहीं

नश्तर से नैन तेरे चल जाते,
जब तब, घायल कर जाते,
दिल को मेरे हाय, तब तब,
थोडा ठहर, न हो रुखसत,
रात जवां, अभी ढली नहीं|
प्यारी सी हँसी, कोमल पंखुडियां,
होठ तेरे, ललचाते मुझको,
शर्म से लाल गाल तेरे,
कितना रोकूँ, तड़पाते मुझको,
थोडा ठहर, न हो रुखसत,
रात जवां, अभी ढली नहीं|
जब होती है तू उदास, रोता है,
मन मेरा, दुखता अन्दर कुछ मेरे,
मत बहाना कभी तू आंसू,
बहुत कीमती हैं, पूछ मुझसे,
थोडा ठहर, न हो रुखसत,
रात जवां, अभी ढली नहीं|
जुल्फें तेरी, उलझी सुलझी,
हर वक़्त तेरा जूझना उनसे,
पर जैसी भी हैं, भाता है मुझे,
उंगलियाँ जब फसती हैं मेरी,
थोडा ठहर, न हो रुखसत,
रात जवां, अभी ढली नहीं|
बचपना तेरा, इतराना, कट्टी,
हंस पड़ता हूँ, बंद आँखें करके,
मेरे छूने से होती सिरहन तुझे,
तुझे परेशां करता मैं हक़ से हूँ,
थोडा ठहर, न हो रुखसत,
रात जवान, अभी ढली नहीं|
जाना है तो जा, न पीछा
करूंगा मैं, बस निगाहें मेरी,
रुखसत भी हो गयी जो तू,
अहसास को कैसे ले जायेगी,
कितना भी दूर चली जा,
यह रात लौटकर फिर आएगी||