कभी इधर, कभी उधर,
भटकातीं है मन मेरा,
सब गलतियां करती हैं हूर,
दिल का मेरे क्या कसूर।
भटकातीं है मन मेरा,
सब गलतियां करती हैं हूर,
दिल का मेरे क्या कसूर।
खुद ने दिया इतना प्यार,
बाँट बाँट के थका हूँ मैं,
पर ख़त्म नहीं होता सुरूर,
दिल का मेरे क्या कसूर।
बाँट बाँट के थका हूँ मैं,
पर ख़त्म नहीं होता सुरूर,
दिल का मेरे क्या कसूर।
दुनिया ने किया बदनाम मुझे,
तितलियाँ पकड़ता तो बचपन से था,
ठरकी थोड़ा मैं था ज़रूर,
दिल का मेरे क्या कसूर।
तितलियाँ पकड़ता तो बचपन से था,
ठरकी थोड़ा मैं था ज़रूर,
दिल का मेरे क्या कसूर।
आँखों से खिची चली आयीं,
इशारों तक बात नहीं आयी,
पर कभी मैंने न किया गुरूर,
दिल का मेरे क्या कसूर।
इशारों तक बात नहीं आयी,
पर कभी मैंने न किया गुरूर,
दिल का मेरे क्या कसूर।
चाह नहीं, ठहराव नहीं,
रुका नहीं मैं किसके लिए,
अपनी धुन में रहता मगरूर,
दिल का मेरे क्या कसूर।
रुका नहीं मैं किसके लिए,
अपनी धुन में रहता मगरूर,
दिल का मेरे क्या कसूर।
मैखाने के पैमाने से,
कुछ कसर नहीं रखी बाकी,
आखिर कुछ तो बहकेगा,
इसमें दिल का मेरे क्या है कसूर।।
कुछ कसर नहीं रखी बाकी,
आखिर कुछ तो बहकेगा,
इसमें दिल का मेरे क्या है कसूर।।